Kavi Suprabhacharya
कवि सुप्रभाचार्य
कवि सुप्रभाचार्य दिगंबर संप्रदाय के अनुयायी थे। कवि ने स्वयं को दिगंबर साधु के रूप में उपस्थित किया है। इनका समय 13 वी शताब्दी माना गया है। कवि की एकमात्र रचना वैराग्यसार लघुकाय ग्रंथ के रूप में उपलब्ध है इसमें 77 उपदेशात्मक दोहे निबद्ध हैं। कवि की रचना सांसारिक विषयों की अस्थिरता और दुखों की बहुलता का प्रतिपादन कर धर्म में स्थिर बने रहने के लिए प्रेरित करती है।
कवि कहते हैं - रे धार्मिको! जिन धर्म से स्खलित न हो। जो प्रातः काल सूर्योदय के समय शुभ गृह थे वही सूर्यास्त पर श्मशान हो गए अतएव परोपकार करना मत छोड़ो, संसार क्षणिक है। जब चंद्र और सूर्य भी अस्त हो जाते हैं तब कौन स्थिर रह सकता है?